तॆलंगाना के विधायकों के खरीद – फरोक्त मामले से अब आर.एस.एस. (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) के उच्च स्थरीय नेता भी परेशान नजर आ रहे है। इस कांड में रंगे हाथ पकडे जाने वालों में स्वामी रामचंद्र भारती एवं अन्य सीधे आर.एस.एस. के दिग्गज बी.एल. संतोष के करीबी व्यक्ति होने की बात बाहर आने से यह मामला काफी चर्चित बनगया। इतना ही नहीं मामले की जांच के लिये सिट की नियुक्ति और आर.एस.एस. के शीर्ष नेता बी.एल. संतोष को समन जारी किये जाने के बाद… यह मामला और भी गंभीर बन गया है। प्राप्त समाचारों के अनुसार इस मामले को लेकर आर.एस.एस यह महसूस कर रही है कि धूमिल मे मिट रही प्रतिष्ठा को कैसे रोका जाए। कई वर्षों से एक सेवा संस्था के रूप में और हिंदू विचार धारा की रक्षक के रूप में बनाई गई छवी, को काफी धक्क लग रहा है। इस के कई कारण हो सकते है, लेकिन उसके जडों को ढूंढने की आत्ममंथन किये जाने की आवश्यकता पर कुछ आर.एस.एस. समर्थकों द्वारा जोर दिया जा रहा हैं।
सेवा का प्रतीक माना जाता था आर.एस.एस को…
एक समय ऐसा था कि आर.एस.एस. को सेवा का प्रतीक माना जाता था। इतना ही नहीं समाज में इस विचार धारा रखने वालों को एक अलग पहचान दिया जाता था। कई ऐसे लोग दिखाई देते थे कि, अपने आप को स्वयं सेवक बताने में गर्व महसूस करते थे। समाज के विभिन्न पेशों में कार्यरत प्रमुख लोग भी, रोज एक घंटा, या सप्ताह में एक दिन…या साल में कुछ दिन …समय निकाल के स्वयं सेवक के रूप में काम करते थे। इन लोगों में अधिक लोग हिंदू धार्मिक विचार रखते थे। वे हिंदुत्व होने की खूबियाँ..लोगों को समझाते थे। भारतीय संस्कृति को बनाये रखने, मानव सेवा की प्राथमिकता पर जोर देते थे। इस कारण समाज के कुछ हिंदू वर्ग इस संस्था को सम्मान देते थे। सेवा कार्यों के लिये गुप्त दान भी दिया करते थे। अभी भी देने वाले कई लोग है। इन लोगों द्वारा पाठशालाएँ, चिकित्सा शिविर, बाड पीडितों की सहयता जैसे कार्यक्रम चलाये जाते । देश भक्ति, राष्ट्रीयता और भ्रष्टाचार का विरोधाभास जैसे भावनाएं स्वयं सेवक और उनके समर्थकों में खुलकर दिखे जाते । इसी कारण वाजपेई, आडवाणी नेताओं जैसों को काफी सम्मान मिलता था। साथ ही आर.एस.एस. अनुशासन के लिये भी प्रतीक माना जाता था।
सौ साल पुरानी आर.एस.एस. पर स्वतंत्र संग्राम के समय..काफी कुछ उंगलिया उठाये गये थे। गांधीजी के हत्या के बाद तत्कालीन गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने आर.एस.एस. पर प्रतिबंध भी लागू किया था । लेकिन तत्कालीन नेता गोल्वाल्कर ने पटेल से विचार विमश्र कर भारतीय संस्कृति को बनाये रखने की आवश्यकता पर जोर दिया था । भारतको सेकुलर (धर्मनिर्पेक्ष) देश बनाने में विरोध नहीं करने का भी आश्वासन देते हुए अपने क्रिया कलापों को मात्र समाजिक, सांस्कृतिक कार्यों तक सीमित करने का वादा किये जाने से आर.एस.एस.पर लगाई गई प्रतिबंध हठाया गया। बाद में आर.एस.एस. ने अपने अनुबद्ध संस्थाएँ ( फ्रंटल आर्गनाईजेशन्स) बनाया और समाज के विभिन्न वर्गों में भारतीय संस्कृति की विचार धारा को विस्तृत करने का योजना बनाया। जैसे कि ए.बी.वी.पी., स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय जनसंघ, भारतीय मजदूर संघ आदि.। इस के अलावा पाठशालाएँ भी खोला गया कि बचपने से हिंदु विचार धारा और देश भक्ति को बडाया जाए। उस के बाद विद्यार्थी संघठन के रूप में एबीवीपी, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग कर ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को मजबूत रखने के लिये स्वदेशी जागरण मंच, मजदूरों को संघठित करने के लिये श्रमिकों मे भी अपनी विचार धारा फैलाने के लिये बी.एम.एस और राजनीति क्षेत्र के भारतीय जन संघ बनाया गया था। जो समय के अनुसार भारतीय जनता पार्टी बन गया। जो अनुशासन और नैतिक मूल्यों के लिये प्रतीक माना जाता था।
अलग विचार धारा रखने वाली पार्टी के रूप में प्रतिष्ठित था भाजपा..
प्रधान मंत्री इंदिरागांधी के एमर्जेन्सी लागू करने के बाद राजनीतिक कैद बने कई नेताओं ने मिल कर जन संघ से जनता पार्टी बना या। जो 1970 में भाजपा के रूप में स्थापित हुआ। तब से भाजपा की प्रतिष्ठा और जनता में उसकी वर्चस्व बडाने के पीछे आर.एस.एस. को काफी रणनीति अपनाना पडा। एक समय में लोक सभा में दो सांसदों तक सीमित भाजपा, जल्द ही अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ पार्टी की छवी बडी। इसके लिये आर.एस.एस. को काफी काम करना पडा। लेकिन उस दौर का अलग ही बात था । भाजपा का अलाकमान आर.एस.एस के आदेशों पर चलती थी। । लेकिन आज उस अपवाद को भी सुनने को मिल रहा है कि भाजपा का आलाकमान को, आर.एस.सस. के प्रमुख मोहन भगत नही, बल्कि प्रधन मंत्री नरेंद्र मोदी का वर्चस्व ही चला रहा है।
भाजपा की लोक प्रियता बढाने या चुनावों में जनादरण बडाने के लिये आर.एस.एस. को कई ऐसे कदम उठाने पडे कि बहु संख्याक वर्ग हिंदू वर्ग, भाजपा के समर्थन में वोट दें। जिस में राम जन्म भूमि, कश्मीर का धारा 370, समान नागरिक संहिता, तलाक-तलाक जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा छेडा गया। भाजपा को एक अनुशासनात्मक राजनीतिक दल के रूप में जनता के सामने दर्शाये जाने के लिये आर.एस.एस. ने काफी कुछ रण नीतियों को अपनाया। जिस में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को एक वोट से केंद्र सरकार की गद्दी छुडवाया गया। तब लोगों में यह संदेश भिजाया गया कि भाजपा सत्ता का लालची नहीं बल्कि नैतिक मूल्यों पर अडिग रह कर सत्ता से हट जाएगी। वाजपेय ने जनता को यह कहा कि वे चाहे तो एक वोट प्राप्त करने के लिये वे कीसी भी राजनीतिक दल के सांसद को दल बदलने के लिये मजबूर करते थे। लेकिन वे ऐसा नहीं किये। लोगों ने इस गठना से आर.एस.एस. के प्रति जनता में उस भावणा बडी कि आर.एस.एस. के विचार धारक होने के कारण ही भाजपा में इस तरह दिग्गज नेता शामिल है। इस का श्रेय मात्र आर.एस.एस. को ही जाएगा ।
एक समय में भाजपा नेताओं में आर.एस.एस. के प्रति डर था…
ऐसा भी एक जमाना था कि भाजपा के नेताओं में ऐसा विचार रहता था कि यदि आर.एस.एस. के पदाधिकारियों के नजरों में उनकी छवी खराब हो गयी तो, उनकी राजनीतिक विकास खत्म हो जाएगी। लेकिन आज कल उस तरह की वातावरण नहीं दिख रहा है। इस का एक उदाहरण यह देख सकते है कि भाजपा के प्रतिष्ठित नेता माने जाने वालों में से एक नेता लाल कृष्ण आडवाणी। वे अपने राजनीतिक विचारों से एक अलग छवी बनाये रखने में सफल हुए । लेकिन उन्ही की एक विचार या एक वक्तव्य ने उनकी राजनीतिक वर्चस्व को बिगाड दिया। कहा जाता है कि उनके उस बयान से आर.एस.एस. संघठन ना खुश हो गई और उन्हें दर किनार कर दी। जिस के कारण वे प्रधान मंत्री पद से वंचित रह गये। कई बडे बडे भाजपा के नेता अपने आंतरिक वार्ता में यह स्वीकारते है कि आडवाणी जैसे बडे हस्ती ही अपने बयानबाजी से प्रधान मंत्री नहीं बने, तो हमारी औकात क्या है? लेकिन आज कल तो भाजपा के नेताओं में आर.एस.एस के प्रति वो निष्ठा नहीं रही, और उनका करता-धरता सब कुछ मोदी है। प्रधान मंत्री मोदी के गुण गाँवों और राजनीतिक सांप सीढी को चढ पाओ। भाजपा के गलियारों में यह कहा जाता है कि आडवाणी की उस टिप्पणी से आर.एस.एस. काफी असंतोष हो गई कि जिन्ना देश भख्त और बडे धर्मनिर्पेक्षक थे। उनकी एक बयान से ना खुश आर.एस.एस. उनकी तकदीर बदल दी और प्रधान मंत्री बनने की उनकी इच्छा पूरा नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी के आने बाद, अपने ही गुरू माने जाने वाले आडवाणी को दूर रखा गया और पार्टी में मोदी का वर्चस्व बड गया। पार्टी में मोदी ने केशूभाई पटेल जैसे नेताओं से बचने के लिये वीएचपी नेता प्रवीण तोगाडिया, आडवाणी जैसों का सहयोग लिये और अपना कद बडाने में सफल बने। लेकिन बाद में तोगाडिया को भी दर किनार किया गया ।
प्रधान मंत्री मोदी बने आर.एस.एस.के लिये हावी ।
देश की राजनीति में आज कल यह कहा जा रहा है, कि चुनावों में जीतने के लिये भाजपा के उम्मीदवारों को ना तो पार्टी की छवी काम आ रहा है, नाही आर.एस.एस. का । मात्र विश्व गुरु कहे जाने वाली मोदी की छवी ही चुनावों में काम कर रहा है। ठीक इसी तरह अभी गुजरात में भी मात्र मोदी के छवी पर ही चुनाव लडे जा रहे है। विभिन्न वर्गों में असंतोष होने के बावजूद वहां मोदी वर्चस्व के भरोसे पर चुनाव जीतने की आशंका रखा गया है। यह बात खुल कर भाजपा के नेता कह रहे है। लेकिन इस तरह की बदली वातावरण पर आर.एस.एस. के उच्च स्थरीय नेताओं को सोचने की और पुनः समीक्षा करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। व्यक्ति पूजा के विरुद्ध विचार धारा रखने वाली आर.एस.एस. को यह नुकसान दायक बन रहा है। जब से प्रधान मंत्री मोदी और गृह मंत्री अमिताह को जोडी बनी और पार्टी में उनकी जैसा, जैसा छवी बडा ..वैसा ही आर.एस.एस. का छवी खत्म होत जा रहा है। अब भाजपा के नेताओं में वो डर नहीं दिख रहा है कि आर.एस.एस. से बच के रहें ।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आर.एस.एस. के प्रचारक थे। वे संघ के लिये फुल टाईम कार्यकर्ता थे। आर.एस.एस के विचार धारक होने के कारण वे राजनीति में आये और सेवा करने का मौका मिला। लेकिन समय के अनुसार वे अपना कद मातृ संस्था आर.एस.एस से भी बढा लिया, ताकि वे विश्व पटल पर अपने आप को योधा के रूप में प्रमोट किया। कुछ हद तक तो वह प्रमोशन भाजपा के साथ साथ आर.एस.एस. को भी काम आया, लेकिन अब उलटा लेने के देने के पड गया। आर.एस.एस. के निर्देशों में भाजपा, काम करने की स्थिति खत्म हो गयी। अब भाजपा इस हद तक पहुँच गई कि, आर.एस.एस. क्या चाहती है, कहें उसे अमल कर दिखायेंगी। लेकिन अन्य मामलों में आर.एस.एस.की दखल अंदाज नहीं चाह रही है। राम जन्म भूमि विवाद हो, राम मंदिर का निर्माण, या फिर कश्मीर में धारा 370 का अमलावरी, तलाक-तलाक जैसे मुद्दों को अमलवरी कर दिखाने का आश्वासन दिया। मोदी, स्वयं प्रचारक होने के कारण, आर.एस.एस. के संस्थागत खामियों को अच्छे तरह जानते है। इस कारण उन्होंने अपने आप को उभारने में उसका भी फायदा उठाया। भाजपा के एक और प्रमुख नेता अमित शाह के साथ जोडी जमने के बाद को विभिन्न राज्यों में पार्टी को सत्तासीन करने में कई ऐसे रास्ता अपना रहे है। जिनसे कई आर.एस.एस. के बुजुर्ग ना खुश है। कहा जा रहा है कि राजेंद्र सिंह, सुदर्शन के बाद सर संघचालक के रूप में पदासीन मोहन भागवत ने भाजपा को नेयंत्रित करने में असफल साबित हो रहे है। कर्नाटक के दत्तात्रेय होसबले जैसे कुछ नेताओं ने प्रधान मंत्री मोदी प्रशासन पर ऊंगली उठाया, लेकिन मोहन भागवत ने मोदी सरकार का समर्थन करने से कई आर.एस.एस. के नेता चुप्पे साधे रह गये ।
एक समय वो भी था कि आर.एस.एस. के इशारों के लिये भाजपा इंतेजार करता था। लेकिन अब पार्टी में मोदी, अमिता शा की जोडी का दौर चल रहा है। स्थिति बदल गई। भाजपा के लिये आर.एस.एस. काम करना पड रहा है। तेलंगाना विधायकों के खरीद फरोख्त मामले में यह स्पष्ट नजर आ रहा है, कि भाजपा के लिये आर.एस.एस. के दिग्गज काम कर रहे है। विभिन्न राज्यों में भाजपा को सत्ता की कुर्सी दिलाने के लिये आर.एस.एस. दिग्गंज अनैतिक काम करने के लिये मजबूर बन गये है। वाजपेई के समय का वह दौर नहीं दिखाई दे रही है। वित्त व्यवस्था की खस्ता हालत , बेरोजगारी, गरीबी जैसे क्षेत्रों में मोदी सरकार की स्पष्ट विफलताएं नजर आ रहे है। फिर भी मोदी सरकार अपनी विफलताओं को सुधारने के बजाए, अन्य राज्यों में स्थित दूसरे सरकारों को गिराने में लगी है। प्रजातंत्र के बजाए, एकाधिकार चलाने में विश्वास रख रही है। अप्रजातांत्रिक, भ्रष्टाचार के आधार पर राजनीति चलाने का प्रयास कर रही है। फिर भी आर.एस.एस. मौनव्रत कर रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में तेलंगाना में विधायकों की खरीद-फरोक्त किस्सा बाहर आने से बुजुर्ग आर.एस.एस. के नेता आत्म मंथन कर रहे है। सौ साल पुरानी आर.एस.एस. की छवी दिन ब दिन खत्म हो रही देख वे काफी चिंतित है।
Monday - December 23, 2024